ज़िंदगी में कामयाब होना कौन नहीं चाहता? जीवन मिलता ही इसीलिये है कि इंसान अपने पुरुषार्थ का भरपूर उपयोग करते हुए ऊंचा मुकाम हासिल करे। लगन, परिश्रम, समर्पण और अटूट धैर्य को लगातार बनाए रखते हुए जीवन में बड़ी से बड़ी सफलता और मान-सम्मान पाना हर इंसान का मकसद तो होता ही है, अध्यात्म की मानें तो यह सब पाना इंसान का फर्ज भी है।
अब सवाल यह उठता है कि सफलता पाना ज़िंदगी का मकसद तो है पर वह सफलता किन शर्तों पर मिल रही है, यह सोचना भी बेहद अहम् है। सच्चाई, ईमानदारी और सही नीति पर चलकर पाई गई कामयाबी ही जायज भी है और सभी की तारीफ़ के काबिल भी वही है।
हिन्दू धर्म ग्रंथ रामायण इसी तरह इंसान को सावधान करता हुआ कहता है-
परहित सरिस धर्म नहिं कोई,
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।
अगर इस पर गहराई से विचार करें तो यह उजागर हो जाता है कि नीति और धर्म दोनों का मतलब एक ही होता है। जबकि अनीति को अधर्म कहा जाना पूरी तरह से सही है। यानि जिन कार्यों को करने की प्रेरणा और सीख व्यक्ति को धर्म या धार्मिक शास्त्रों से प्राप्त होती है वे कार्य नीति के अन्तर्गत ही आते हैं। दूसरी तरह यह भी जाहिर है कि जिन कार्यों को धर्म में बुरा, अनैतिक या पाप पूर्ण बताया गया है, वे सब अनीति के दायरे में आते हैं। तरक्की करना, कामयाब होना, यश-समृद्धि के शिखर को छूना कोई गलत बात नहीं है, पर नैतिकता और जीवन मूल्यों को भूल किसी दूसरे के हक को छीनकर ऊंचा उठना किसी भी नजरिये से जायज़ नहीं है।
इन 7 लोगों को नमस्कार न करें!!!
सनातन धर्म की श्रेष्ठता का कारण उसकी परंपराओं के पीछे इंसानी जीवन से जुड़ी वैचारिक और व्यावहारिक गहराई है। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक बताई गई अनेक क्रियाएं इंसान के विचार और व्यवहार को अनुशासित रख जीवन को ऊंचा उठाती है।
ऐसी ही एक क्रिया है - नमस्कार। यह शारीरिक मुद्रा पूरी दुनिया में भारतीय होने की पहचान भी है। नमस्कार की मुद्रा असल में सम्मान या स्नेह प्रगट करती है। वहीं इसका असर संबंधों को गहरा ही नहीं करता, बल्कि यह छोटी-सी शारीरिक मुद्रा किसी भी इंसान के व्यक्तित्व, चरित्र और व्यवहार को भी बेहतर बनाती है। क्योंकि दोनों हाथों को मिलाकर, हल्का सा शरीर के झुकाव के साथ किया गया नमस्कार असल में सबसे पहले व्यक्ति के अहं को दूर करता है, जो अनेक मानसिक और व्यावहारिक दोषों का कारण भी है।
नमस्कार द्वारा अभिवादन का यह तरीका दूसरों पर भी अच्छा असर करता है, जो आपके लिए भी सकारात्मक नतीजे देता है। क्योंकि दूसरों को दिया गया सम्मान बदले में वैसा ही सम्मान, सहयोग और प्रेम लाता है।
चूंकि हर क्रिया और व्यवहार का महत्व मर्यादा के बिना अधूरा है। यही कारण है कि हिन्दू धर्म शास्त्रों में नमस्कार करने के लिए भी कुछ मर्यादाएं बताई गईं है। जिनका पालन आपके साथ दूसरों के लिए भी हितकारी होती हैं। जानते हैं किसी व्यक्ति से नमस्कार किन-किन स्थितियों में न करें -
जो व्यक्ति दूर हो - ऐसी स्थिति में कोई व्यक्ति आपके अभिवादन को न देख पाए। जिसे अनदेखी समझकर आपके मन में कलह पैदा हो सकता है।
जो व्यक्ति जल में हो - जल में रहने या तैरते वक्त थोड़ी भी चूक जानलेवा हो सकती है। यह ध्यान भंग आपके नमस्कार से भी संभव है।
जो व्यक्ति दौड़ रहा हो - आपके द्वारा किए गए नमस्कार से दौड़ते व्यक्ति की एकाग्रता और लय बिगडऩा उसकी चोट या ठोकर का कारण बन सकता है।
धन के अहंकार से ग्रसित व्यक्ति - ऐसे व्यक्ति से नमस्कार आपके अपमान का कारण भी बन सकता है।
नहाता हुआ व्यक्ति - स्नान का समय नमस्कार के लिए उचित स्थिति नहीं मानी जाती। क्योंकि यह आप और उस व्यक्ति को असहज बना सकती है।
मूढ़ या मूर्ख व्यक्ति - आचरण व व्यवहार की समझ ने होने से ऐसा व्यक्ति नमस्कार की अहमियत नहीं समझता और आपकी भावना को आहत कर सकता है।
जो व्यक्ति अपवित्र हो - किसी कारणवश जैसे मृत्यु संस्कार कर्म या किसी अन्य कारण से अपवित्रता के दौरान कोई व्यक्ति सहज मनोदशा में नहीं होता, तो नमस्कार उचित नहीं है।
ऐसी स्त्री होती है पतिव्रता
आज के दौर में हर गृहस्थ पुरूष या अविवाहित, ऐसी स्त्रियों की चाहत या कामना रखता है, जिनके बोल, विचार और व्यवहार से गृहस्थ जीवन स्वर्ग बन जाए। वैसे पति-पत्नी के बीच मधुर संबंधों के लिए दोनों का एक-दूसरे पर पूरा भरोसा और समर्पण ही अहम होता है। चूंकि स्त्री गृहस्थ जीवन की धुरी मानी जाती है। इसलिए यहां हम खासतौर पर समझते हैं कि गृहस्थ जीवन में स्त्री का पति के लिए कैसा भाव, विचार और व्यवहार जरूरी है?
हिन्दू धर्म शास्त्र अनेक ऐसी स्त्रियों के प्रसंगों से भरा है, जिन्होंने अपने पातिव्रत्य के धर्म पालन से पति, परिवार या कुटुंब की संकटों से रक्षा की। जिससे उन्होंने न केवल स्त्री जाति का मान बढ़ाया, बल्कि हर स्त्री को उसकी ताकत से पहचान कराई। यही कारण है कि वे युग के बदलाव होने पर भी आज भी सुखद गृहस्थ जीवन के लिए स्त्रियों की प्रेरणा और आदर्श हैं। जिनमें सती अनुसूया, सीता सहित अनेक नारियां प्रमुख हैं।
आज के दौर में हर गृहस्थ पुरूष या अविवाहित, ऐसी स्त्रियों की चाहत या कामना रखता है, जिनके बोल, विचार और व्यवहार से गृहस्थ जीवन स्वर्ग बन जाए। वैसे पति-पत्नी के बीच मधुर संबंधों के लिए दोनों का एक-दूसरे पर पूरा भरोसा और समर्पण ही अहम होता है। चूंकि स्त्री गृहस्थ जीवन की धुरी मानी जाती है। इसलिए यहां हम खासतौर पर समझते हैं कि गृहस्थ जीवन में स्त्री का पति के लिए कैसा भाव, विचार और व्यवहार जरूरी है?
हिन्दू धर्म शास्त्र अनेक ऐसी स्त्रियों के प्रसंगों से भरा है, जिन्होंने अपने पातिव्रत्य के धर्म पालन से पति, परिवार या कुटुंब की संकटों से रक्षा की। जिससे उन्होंने न केवल स्त्री जाति का मान बढ़ाया, बल्कि हर स्त्री को उसकी ताकत से पहचान कराई। यही कारण है कि वे युग के बदलाव होने पर भी आज भी सुखद गृहस्थ जीवन के लिए स्त्रियों की प्रेरणा और आदर्श हैं। जिनमें सती अनुसूया, सीता सहित अनेक नारियां प्रमुख हैं।
इसलिए सती या पातिव्रत्य का पालन करने वाली इन स्त्रियों को सामने रखकर जानें हिन्दू धर्म शास्त्र में बताए गए उन गुणों को जिनसे हर स्त्री की पहचान पतिव्रता के रूप में होती है -
- पति को हमेशा भगवान मानने वाली यानि पति के प्रति हर तरह से समर्पित स्त्री।
- दु:खों से न घबराकर हंसमुख और प्रसन्न रहने वाली।
- हर स्थिति में सुख को खोजने वाली।
- पति में मन रखने वाली।
- पति को सेवा से वश में करने वाली।
- पति के कटु बोल और व्यवहार को भी सहन कर खुश रहने वाली।
- पति के धनहीन, रोगी, दीन या थके होने पर भी सेवा को आतुर रहे।
- संयम रखने, चतुरता यानि व्यावहारिक समझ रखने वाली।
- पति से संतान उत्पति करने वाली।
- पति को बड़े से बड़े सुख से भी ज्यादा चाहने वाली।
- सधी हुई दिनचर्या, जीवनशैली वाली स्त्री जैसे - सुबह जल्दी उठना, स्वयं और घर को साफ रखना या घर को व्यवस्थित रखना, देव पूजा करना।
- सास-ससुर का हर तरह से ख्याल रखने वाली।
- अतिथि, मेहमान यहां तक कि घर के नौकर से भी विनम्रता और स्नेह से व्यवहार करने वाली।
- पीहर में माता-पिता को भी सुख देने वाली।
सार यही है कि पति और गृहस्थी के लिए जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को समझे बिना किसी द्वेष भाव से, मन को वश में रख, शौक-मौज की लालसा से दूर, गृहस्थी को धर्म मानकर चलाने वाली स्त्री सही मायनों में सती और पतिव्रता है।